हैविंगहर्स्ट का नैतिक विकास सिद्धांत
havighurst moral development theory
हैविंगहर्स्ट ने नैतिक विकास के सिद्धांत में पांच अवस्थाये बताई है |
- पूर्व नैतिक अवस्था (0-2 वर्ष) – इसमें बालक को अच्छे बुरे का ज्ञान नही होता है , ये नैतिक विकास की पूर्व की अवस्था है |
- स्व केन्द्रित अवस्था (2-7 वर्ष)– इस अवस्था में बालक का नैतिक विकास नहीं होता है , लेकिन वह सही – गलत बताने लगता है | इसमें बालक अपनी ही बात को सही बताता है और यदि कोई उन्हें टोक दे या रोक दे तो उससे गलत बताता है , बालक का व्यवहार अहंवादी होता है |
- परम्परा को धारण करने वाली अवस्था (7-12 वर्ष)- इस अवस्था में बालक का नैतिक विकास प्रारंभ हो जाता है , बालक सही – गलत, उचित – अनुचित का भेद सीख जाता है |
- आधारहीन आत्म चेतना अवस्था – (7-12 वर्ष) – इस अवस्था में किशोर आधारहीन व खोखले आदर्शो लो बात करता है जो उससे यथार्थता के धरातल से दूर ले जाता है | इस अवस्था में किशोरो का व्यक्तित्व सिगमंड फ्रायड के सुपर ईगो(Super EGO) से नियंत्रित होता है , ये अवस्था व्यक्ति की देवदूत अवस्था (Angel in a Person) होती है |
- आधारयुक्त आत्मचेतना अवस्था (18 वर्ष के बाद)- बालक/व्यक्ति अपनी इस अवस्था में तर्कसंगत बाते करता, व्यक्ति न केवल भावनाओ से अपितु विचारो से भी काम लेता है |
नोट : विकासात्मक कार्यो का सर्वप्रथम समप्रत्यय हैविंगहर्स्ट ने दिया था |
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