सिगमंड फ्रायड आस्ट्रिया के एक मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए सिद्धांत दिया जो “फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत (Freud’s Psychoanalytic Theory)” कहलाया | जिसमें व्यक्ति की मानसिक क्रियाए व व्यवहार से संबंधित अध्यन्न किया गया |
मनोविश्लेषण (Psychoanalytic)
1.फ्रायड ने व्यक्तित्व के जिस सिद्धांत को प्रतिपादित किया , वह व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत कहलाता है |
2.मनोविश्लेषण मुख्यतः मानव के मानसिक क्रियाओ और व्यवहारों के अध्ययन से संबंधित है किन्तु इसे समाज में भी लागु किया जा सकता है |
फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व की संरचना
फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत व्यक्तित्व की संरचना का वर्णन दो मॉडल के आधार पर करता है |
1. आकारात्मक मॉडल
2. गत्यात्मक या संरचनात्मक मॉडल
1. आकारात्मक मॉडल
फ्रायड ने अपने मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत में आकारात्मक मॉडल को प्रस्तुत किया इसमें फ्रायड ने मन की तीन अवस्था को बताया | जिसे समझाने के लिए उसने बर्फ की चट्टान (Iceberg) का उदहारण दिया | फ्रायड के अनुसार जैसे समुन्द्र में बर्फ की चट्टान का कुछ भाग पानी के बाहर होता है तथा अधिकाश भाग पानी के अन्दर होता है | उसी प्रकार जो भाग पानी के बाहर है वो “चेतन मन” है जो 10 प्रतिशत होता है जबकि अधिकांश भाग जो पानी के अन्दर है वो “अचेतन मन” है जो 90 प्रतिशत भाग है तथा जो भाग पानी के अंदर व बाहर दोनों की बीच की स्थति में है वो “अर्धचेतन मन “है जिसका कोई आकार (Size) नही है
1. चेतन मन (conscious)
2. अर्धचेतन मन (half conscious)
3. अचेतन मन (unconscious)
1. चेतन मन (conscious)-
चेतन मन मस्तिषक की जागृत अवस्था है जो 10 प्रतिशत होती है |
2. अर्धचेतन मन (half conscious)
ये चेतन और अचेतन मन के बीच की अवस्था है | ये 0 शून्य अवस्था में होता है | इसमें हम याद की गयी बातो को भूल जाते है तथा थोडा जोर देने पर याद आ जाती है |
3. अचेतन मन (unconscious)
अचेतन मन मस्तिषक की वह अवस्था है जिसमे दुःख ,दबी हुई इच्छाये , कटु अनुभव आदि होते है|
गत्यात्मक या संरचनात्मक मॉडल
फ्रायड के अनुसार मूल प्रवृतियो से उत्पन्न मानसिक संघर्षो का समाधान जिन साधनों के द्वारा होता है , वे सभी गत्यात्मक या संरचनात्मक मॉडल के अंतर्गत आती है |
जिसके तीन साधन है |
1. इदम् (ID)
2. अहम् (EGO)
3. पराअहम् (SUPER EGO)
1. इदम् (ID)
ये व्यक्ति में जन्म जात होता है, ये सुखवादी सिद्धांत पर आधारित होता है। अर्थात इसमें व्यक्ति केवल सुख की कल्पना करता है |
इदम् (ID) अचेतन मन से जुड़ा हुआ होता है जिसका अर्थ है की ये अपनी दबी हुई इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है जिसमे काम प्रवृत्ति सबसे बड़ा सुख है।
इदम् पार्श्विक प्रवृत्ति से जुड़ा है।
प्रवृति- पशु प्रवृति
2. अहम् (EGO)
अहम् (EGO) में बुद्धि , चेतना , व तार्किकता होती है यह वास्तविकता पर आधारित है।
यह अर्द्ध चेतन मन से जुड़ा है इसमें व्यक्ति कार्य के लिए विचार करता है इसमें उचित अनुचित का ज्ञान होता है।
प्रवृति – मानवतावादी
3. पराअहम् (SUPER EGO)
पराअहम् (SUPER EGO) में आदर्शवाद आध्यात्मिक प्रवृति की अवस्था होती है |
पराअहम् पूरी तरह सामाजिकता एवं नैतिकता पर आधारित है। यह चेतन मन से जुड़ा हुआ है। जिस व्यक्ति में पराअहम् अधिक होता है वह बुरे विचारो से दूर रहता है |
प्रवृत्ति – देवत्त
फ्रायड का मनोलैंगिक विकास सिद्धांत
फ्रायड ने अपने इस सिद्धात में काम प्रवृति को विकास का महत्वपूर्ण अंग माना , इसके लिए फ्रायड ने मनोलैंगिक विकास का सिद्धांत दिया |
लिबिड़ो (Libido)
लिबिड़ो काम शक्तियों को कहते है जिसमे सुख की अनुभूति होती है |
सिगमंड फ्रायड में अपने सिद्धांत में प्रेम , स्नेह व काम प्रवृति को लिबिड़ो कहा |
सिगमंड फ्रायड के अनुसार यह एक स्वाभाविक प्रवृति है जिसका पूर्ण होना आवश्यक है , यदि इन प्रवृतियों को दबाया जाता है तो व्यक्ति कुसमायोजित हो जाता है |
सिगमंड फ्रायड की मनोलैंगिक विकास की अवस्थाये
( Stages of Psychosexual Development)
1. मुखावस्था (oral Stage) – जन्म से 1 वर्ष
2. गुदावस्था (Anal Stage)- 1 से 2 वर्ष
3. लिंग प्रधानावस्था (Phalic Stage) – 2 से 5 वर्ष
4.अव्यक्तावस्था (latency Stage) -6 से 12 वर्ष
5. जननेंद्रियावस्था (Gental Stage) 12 वर्ष के बाद
1. मुखावस्था (oral Stage) – जन्म से 1 वर्ष
ये मनोलैंगिक विकास की पहली अवस्था है |1 वर्ष से कम आयु के बच्चे इस अवस्था में होते है | इस अवस्था में लिबिड़ो क्षेत्र “मुख” होता है ,जिसके परिणाम स्वरूप बालक में मुख से करने वाली क्रियाओ में आनंद की अनुभूति होती है जैसे काटना ,चुसना ,|
इस अवस्था में व्यक्ति में दो तरह के व्यक्तित्व विकसित होते है |
1. मुखवर्ती निष्क्रिय व्यक्तित्व (Oral Passive Personality) – आशावादिता ,विश्वास का गुण
2. मुखवर्ती /अनुवर्ती आक्रामक व्यक्तित्व (Oral Aggressive Personality) – शोषण ,प्रभुत्व, दुसरो को पीड़ा देना आदि गुण पाए जाते है |
फ्रायड ने ध्रूमपान की आदत को लिबिड़ो की अल्प संतुष्टि माना है |
2. गुदावस्था (Anal Stage)- 1 से 2 वर्ष
ये मनोलैंगिक विकास की दूसरी अवस्था है इसमें कामुकता का क्षेत्र मुख की जगह “गुदा” होता है , जिसके कारण बच्चे मल-मूत्र त्यागने और उन्हें रोकने में आन्नद की अनुभूति करते है | इसी अवस्था में बालक प्रथम बार अंतद्वंद की अनुभूति करता है |
3. लिंग प्रधानावस्था (Phalic Stage) – 2 से 5 वर्ष
ये मनोलैंगिक विकास की तीसरी अवस्था है इसमें लिबिड़ो का स्थान “जननेंद्रिय” होता है |
इस अवस्था में लड़के में “मातृ प्रेम” की उत्पति व लडकियों में “पितृ प्रेम” की उत्पति होती है | जिसका कारण फ्रायड ने लडको में “मातृ मनोग्रंथि (Oedipus Complex) ” तथा लडकियों में ” पितृ मनोग्रंथि (Electra Complex)” को बताया है |
“मातृ मनोग्रंथि (Oedipus Complex) “ के कारण लडको से अचेतन मन में अपनी माता के लिए लैंगिक प्रेम की इच्छा होती है जबकि ” पितृ मनोग्रंथि (Electra Complex)” के कारण लडकियों में अपने पिता की लिए लैंगिक आकर्षण उत्पन्न होने लगता है |
4.अव्यक्तावस्था (latency Stage) -6 से 12 वर्ष
ये मनोलैंगिक विकास की चौथी अवस्था है इसमें लिबिड़ो का क्षेत्र अदृश्य हो जाता है | ये प्रत्यक्ष नही होता है लेकिन माना जाता है की वह सामाजिक कार्यो और हमउम्र के बच्चो के साथ खेल कर अदृश्य लिबिड़ो को संतुष्टि प्राप्त करते है |
5. जननेंद्रियावस्था (Gental Stage) 12 वर्ष के बाद
ये मनोलैंगिक विकास की चौथी अवस्था है ये 12 वर्ष के बाद निरंतर चलती है | इसमें हार्मोन्स का निर्माण होने लगता है जिसके कारण से इस अवस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होने लगता है | ये आकर्षण बहुत ही तीव्र होते है |
स्वमोह (नर्सिसिज्म)
फ्रायड के अनुसार जब बालक शैशव अवस्था में होता है तो अपने रूप पर मोहित हो जाता है और अपने आप से प्रेम करने लग जाता है |
इस प्रकार स्वमोह/आत्म प्रेम को फ्रायड ने “नर्सिसिज्म ” शब्द दिया | नर्सिसिज्म किशोर अवस्था में सर्वाधिक होता है |
Bahut sunder aur zaberdast Gyan
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Team wayofsky.