संधि की परिभाषा , भेद और उदहारण
संधि किसे कहते है ?
संधि की परिभाषा
संधि की परिभाषा उसके अर्थ में निहित होती है तो संधि का शाब्दिक अर्थ है–योग अथवा मेल। अर्थात् दो ध्वनियों या दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को ही संधि कहते हैं।
संधि की परिभाषा-
- जब दो वर्ण पास-पास आते हैं या मिलते हैं तो उनमें विकार उत्पन्न होता है अर्थात् वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। यह विकार युक्त मेल ही संधि कहलाता है।
- कामताप्रसाद गुरू के अनुसार, ’दो निद्रिष्ट अक्षरों के आस-पास आने के कारण उनके मेल से जा विकार होता है, उसे संधि कहते हैं।’
- श्री किषोरीदास वाजपेयी के अनुसार, ’जब दो या अधिक वर्ण पास-पास आते हैं तो कभी-कभी उनमें रूपांतर हो जाता है। इसी रूपांतर को संधि कहते हैं।’
संधि विच्छेद
संधि विच्छेद – वर्णों के मेल से उत्पन्न ध्वनि परिवर्तन को ही संधि कहते हैं। परिणामस्वरूप उच्चारण एवं लेखन दोनों ही स्तरों पर अपने मूल रूप से भिन्नता आ जाती है। अतः उन वर्णों/ध्वनियों को पनुः मूल रूप में लाना ही संधि विच्छेद कहलाता है, जैसे-
दो शब्द वर्ण = मेल = संधियुक्त शब्द
महा + ईश = आ + ई = महेश
यहांॅ (आ+ई) दो वर्णों के मेल से विकार स्वरूप ’ए’ ध्वनि उत्पन्न हुई और संधि का जन्म हुआ।
संधि विच्छेद के लिए पुनः मूल रूप में लिखना होगा।
संधि युक्त शब्द – संधि विच्छेद
महेश – महा + ईश
मनोबल – मनः + बल
गणेश – गण + ईश
संधि के भेद
संधि तीन प्रकार की होती है ,संधि के तीनो प्रकार निम्न है |
(अ) स्वर संधि
(ब) व्यंजन संधि
(स) विसर्ग संधि
(अ) स्वर संधि-
दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार स्वर संधि कहलाता है। स्वर संधि में दो समान या असमान स्वर मिल कर स्वर संधि बनाते है | स्वर संधि के पांच भेद हैं-
(1) दीर्घ संधि
(2) गुण संधि
(3) वृद्धि संधि
(4) यण् संधि
(5) अयादि संधि
(1) दीर्घ संधि
दो समान स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं यदि ’अ’ ’आ’, ’इ’, ’ई’, ’उ’’ ’ऊ’ के बाद वे ही लघु या दीर्घ स्वर आएँ तो दोनों मिलकर क्रमश: ’आ’ ’ई’ ’ऊ’ हो जाते हैं तो उसे दीर्घ संधि कहते है ; जैसे-
दीर्घ संधि के उदहारण
अ+अ =आ अन्न+अभाव = अन्नाभाव
अ+आ =आ भोजन+आलय = भोजनालय
आ+अ =आ विद्या+अर्थी = विद्यार्थी
आ+आ =आ महा+आत्मा = महात्मा
इ+इ =ई गिरि+इंद्र = गिरींद
ई+इ =ई मही+इंद्र = महींद्र
इ+ई =ई गिरी+ईश = गिरीश
ई+ई =ई रजनी+ईश = रजनीश
उ+उ =ऊ भानु+उदय = भानूदय
उ+ऊ =ऊ वधू+उत्सव = वधूत्सव
ऊ+उ =ऊ भू+ ऊर्जा = भूर्जा
ऊ+ऊ =ऊ
(2) गुण संधि
यदि ’अ’ या ’आ’ के बाद ’इ’ या ’ई’ ’उ’ या ’ऊ’, ’ऋ’ आएंॅ तो दोनों मिलकर क्रमषः ’ए’ ’ओ’ और ’अर्’ हो जाते हैं तो उसे गुण संधि कहते है , जैसे-
गुण संधि के उदहारण
अ + इ =ए देव + इंद्र = देवेंद्र
अ + ई =ए गण + ईष = गणेश
आ + इ =ए यथा + इष्ट = यथेष्ट
आ + ई =ए रमा + ईष = रमेश
अ + उ =ओ वीर + उचित = वीरोचित
अ + ऊ =ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि
आ + उ =ओ महा + उत्सव = महोत्सव
आ + ऊ =ओ गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
अ + ऋ =अर् कण्व + ऋषि = कण्वर्षि
आ + ऋ =अर् महा + ऋषि = महर्षि
(3) वृद्धि संधि
जब अ या आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों के मेल से ’ऐ’ तथा यदि ’ओ’ या ’औ’ हो तो दोनों के स्थान पर ’औ’ हो जाता है तो उसे वृद्धि संधि कहते है |, जैसे-
वृद्धि संधि के उदहारण
अ + ए = ऐ एक + एक =एकैक
अ + ऐ = ऐ परम + एश्वर्य =परमेश्वर्य
आ + ए = ऐ सदा + एव =सदैव
आ + ऐ = ऐ महा + एश्वर्य =परमेश्वर्य
अ + ओ = औ परम + ओज =परमौज
आ + ओ = औ महा + ओजस्वी =महौजस्वी
अ + औ = औ वन + औषध =वनौषध
आ + औ = औ महा + औषध =महौषध
(4) यण् संधि
यदि ’इ’ या ’ई’, ’उ’ या ’ऊ’ तथा ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो ’इ’ ’ई’ का ’य्’ ’उ’ ’ऊ’ का ’व्’ और ’ऋ’ का ’र्’ हो जाता है, साथ ही बाद वाले शब्द के पहले स्वर की मात्रा य्, व्, र् में लग जाती है तो उसे यण् संधि कहते है | , जैसे-
यण् संधि के उदहारण
इ + अ = य अति + अधिक = अत्यधिक
इ + आ = या इति + आदि = इत्यादि
ई + आ = या नदि + आगम = नद्यागम
इ + उ = यु अति + उतम = अत्युतम
इ + ऊ = यू अति + ऊष्म = अत्यूष्म
इ + ए = ये प्रति + एक = प्रत्येक
उ + अ = व सु + अच्छ = स्वच्छ
उ + आ = वा सु + आगत = स्वागत
उ + ए = वे अनु + एषण = अन्वेषण
उ + इ = वि अनु + इति = अन्विति
ऋ + आ = रा पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
(5) अयादि संधि
यदि ’ए’ या ’ऐ’ ’ओ’ या ’औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो ’ऐ’ का ’अय्’ ऐ का ’आय्’ हो जाता है तथा ’ओ’ का ’अव्’ और ’औ’ का ’आव्’ हो जाता है तो उसे अयादि संधि कहते है |, जैसे-
अयादि संधि के उदहारण
ए + अ = अय ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय नै + अक = नायक
ओ + अ = अव पो + अन = पवन
औ + अ = आव पौ + अक = पावक
(ब) व्यंजन संधि-
व्यंजन संधि में एक व्यंजन का किसी दूसरे व्यंजन से अथवा स्वर से मेल होने पर दोनों मिलने वाली ध्वनियों में विकार उत्पन्न होता है। इस विकार से होनेवाली संधि को ’व्यंजन-संधि’ कहते हैं। व्यंजन संधि संबंधी कुछ प्रमुख नियम यहांॅ दिये गए हैं-
व्यंजन-संधि के उदहारण
1 यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण आर्थात ’क्’ ’च्’ ’ट्’ ’त्’ ’प्’ के बाद किसी वर्ग का तृतीय चतुर्थ वर्ण आए या य, र, ल, व, या कोई स्वर आए तो ’क्’ ’च्’ ’ट्’ ’त्’ ’प्’ के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण अर्थात् ’ग्’ ’ज्’ ’ड्’ ’द्’ ’ब’ हो जाता है; जैसे-
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + गज = दिग्गज
वाक् + दान = वाग्दान
सत् + वाणी = सद्वाणी
अच् + अंत = अजंत
अप् + इंधन = अबिंधन
तत् + रूप् = तद्रूप
जगत् + आंनद = जगदानंद
षप् + द = शब्द
2 यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण आर्थात ’क्’ ’च्’ ’ट्’ ’त्’ ’प्’ के बाद ’न’ या ’म’ आए तो ’क्’ ’च्’ ’ट्’ ’त्’ ’प्’ अपने वर्ग के पंचम वर्ण अर्थात् ड्, ´, ण्, न, म् में बदल जाते हैं, जैसे-
वाक् + मय = वाड्मय
षट् + मास = षण्मास
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
अप् + मय = अम्मय
3 यदि ’म्’ के बाद कोई स्पर्ष व्यंजन आए तो ’म’ जुडनेवाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण या अनुस्वार हो जाता है, जैसे-
अहम् + कार = अंहकार
किम् + चित् = किंचित्
सम् + गम = संगम
सम् + तोष = संतोष
अपवाद-
सम् + कृत = संस्कृत
सम् + कृति = संस्कृति
4 यदि म् के बाद य, र, ल, व, ष, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मेल हो तो ’म’ के स्थान पर अनुस्वार ही लगेगा, जैसे-
सम् + योग = संयोग
सम् + रचना = संरचना
सम् + वाद = संवाद
सम् + हार = संहार
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + सार = संसार
5 यदि त् या द् के बाद ’ल’ रहे तो ’त्’ या ’द्’ ’ल्’ मंे बदल जाता है, जैसे-
उत् + लास = उल्लास
उद् + लेख = उल्लेख
6 यदि ’त्’ या ’द्’ के बाद ’ज’ या ’झ’ हो तो ’त्’ या ’द्’ ’ज्’ में बदल जाता हैं, जैसे-
सत् + जन = सज्जन
उद् + झटिका = उज्झटिका
7 यदि ’त्’ या ’द्’ के बाद ’ष’ हो तो ’त्’ या ’द्’ का ’च्’ और ’ष्’ का ’छ’ हो जाता है, जैसे-
उद् + ष्वास = उच्छ्वास
उद् + षिष्ट = उच्छिष्ट
सत् + षास्त्र = सच्छास्त्र
8 यदि ’त्’ या ’द्’ के बाद ’च’ या ’छ’ हो तो ’त्’ या ’द्’ का ’च्’ हो जाता है, जैसे –
उद् + चारण = उच्चारण
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
9 यदि ’त्’ या ’द्’ के बाद ’ह’ हो तो त्/द् के स्थान पर ’द्’ और ’ह’ के स्थान पर ’ध’ हो जाता है जैसे-
तद् + हित = तद्धित
उद् + हार = उद्धार
(संस्कृत व्याकरण ग्रंथों में ’उद्’ का प्रयोग श्रेष्ठ बताया गया है जबकि हिंदी में ’उत्’ का भी प्रयोग होता है।)
10 जब पहले पद के अंत में स्वर हो और आगे के पद का पहला वर्ण ’छ’ हो तो ’छ’ के स्थान पर ’च्छ’ हो जाता है, जैसे-
अनु + छेद = अनुच्छेद
परि + छेद = परिच्छेद
आ + छादन = आच्छादन
11 यदि किसी शब्द के अंत में अ या आ को छोडकर कोई अन्य स्वर आए एवं दूसरे शब्द के आरंभ में ’स’ हो तो तो स के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है, जैसे-
अभि + सेक = अभिषेक
वि + सम = विषम
नि + सिद्ध = निषिद्ध
सु + सुप्ति = सुषुप्ति
12 ऋ, र, ष के बाद जब कोई स्वर कोई क वर्गीय या प वर्गीय वर्ण अनुस्वार अथवा य, व, ह में से कोई वर्ण आए तो अंत में आने वाला ’न’, ’ण’ हो जाता है, जैसे-
भर् + अन = भरण
भूष् + अन = भूषण
राम + अयन = रामायण
प्र + मान = प्रमाण
(स) विसर्ग संधि-
विसर्ग (ः) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल में जो विकार होता है, उसे ’विसर्ग संधि’ कहते हैं। विसर्ग संधि संबंधी कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-
यदि किसी शब्द के अंत में विसर्ग ध्वनि आती है तथा उसमें बाद में आनेवाले शब्द के स्वर अथवा व्यंजन का मेल होने के कारण जो ध्वनि विकार उत्पन्न होता हैं वहीं विसर्ग संधि है।
विसर्ग संधि के उदहारण
1 यदि विसर्ग के पूर्व ’अ’ हो और बाद में ’अ’ हो तो दोनों का विकार ओ हो जाता है। जैसे-
मनः + अविराम = मनोविराम
यषः + अभिलाष = यषोभिलाषा
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
2 यदि विसर्ग के पहले ’अ’ हो और बाद वाले शब्द का पहला ’अ’ हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। ’अ’ के अतिरिक्त अन्य कोई भी अक्षर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है, जैसे-
अतः + एव = अतएव
यश: + इच्छा = यशइच्छा
3 यदि विसर्ग के पहले ’अ’ हो तथा बाद में किसी भी वर्ग का तीसरा, चैथा वर्ण अथवा य, र, ल, व व्यंजन आते हैं तो विसर्ग ’ओ’ में बदल जाता है। जैसे-
तपः + वन = तपोवन
अधः + गामी = अधोगामी
वयः + वृद्वि = वयोवृद्व
अंततः + गत्वा = अंततोगत्वा
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
4 यदि विसर्ग के बाद अ के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर अथवा किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या ’य’ ’र’ ’ल’ ’व’ ’ह’ हो तो विसर्ग के स्थान में ’र्’ हो जाता है, जैसे-
आयुः + वेद = आयुर्वेद
ज्योतिः + मय = ज्योतिर्मय
चतुः + दिषि = चतुर्दिष
आषीः + वचन = आषीर्वचन
धनुः + धारी = धनुर्धारी
5 यदि विसर्ग के बाद ’च’ या तालव्य ’श’ आता है तो विसर्ग ’श्’ हो जाता है, जैसे-
पुनः + च = पुनष्च
तपः + चर्या = तपष्चर्या
यश: + शरीर = यश्शरीर
6 यदि विसर्ग के पहले ’अ’ या ’आ’ हो तथा बाद में ’त’ या दंत्य ’स’ आता है तो विसर्ग ’स्’ हो जाता है, जैसे-
पुनः + सर = पुरस्सर
नमः + ते = नमस्ते
मनः + ताप = मनस्ताप
7 यदि विसर्ग के पहले ’इ’ या ’उ’ स्वर हो और उसके बाद ’क’ ’ख’ ’प’ ’फ’ वर्ण आए तो विसर्ग मूर्धन्य ’ष्’ हो जाता है, जैसे-
आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पाद = चतुष्पाद
चतुः + पथ = चतुष्पथ
बहिः + कार = बहिष्कार
(संस्कृत में दुः, निः उपसर्ग नहीं होते इसलिए इनके साथ संधि या संधि-विच्छेद भी अशुद्ध है।)
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