April 21, 2025

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शब्दशक्ति क्या है ?

शब्दशक्ति का अर्थ और उसके प्रकार |

शब्द की शक्ति असमी है। शब्द हमारे मन, कल्पना तथा अनुभूति पर प्रभाव डालता है। प्रयोग के अनुसार शब्द का अर्थ बदल जाता है। अभीष्ट अर्थ श्रोता तक पहुंॅचाने की क्षमता अथवा शब्द में छिपे हुए तात्पर्य को प्रसंगानुसार स्पष्ट करने की सामथ्र्य ही शब्दशक्ति है।

उदाहरण के लिए-रमेश की ’गाय’ पांॅच किलो दूध देती है। तथा-सुमित्रा की बहू तो निरी ’गाय’ है। इन दोनों वाक्यों में ’गाय’ शब्द आया है मगर अर्थ दोनों में भिन्न (एक में पशु का नाम तो दूसरे में भोला, सीधा व सरल व्यक्ति) है। इस प्रकार वक्ता या लेखक के अभीष्ट का बोध कराने का गुण ही शब्द शक्ति है।

शब्द और अर्थ के इस चामत्कारिक स्वरूप को प्रकट करने वाली शब्दशक्तियांॅ तीन प्रकार की हैं-

1.अभिधा शब्दशक्ति-

शब्द की जिस शक्ति से किसी शब्द के सबसे साधारण, लोक प्रचलित अथवा मुख्य अथ का बोध होता है, उसे अभिधा शब्दशक्ति कहते हैं।
पंडित रामदहिन मिश्र ने ’साक्षात् सांकेतिक अर्थ को अभिधा’ कहा है तो आचार्य मम्मट मुख्यार्थ का बोध करानेवाले व्यापार को अभिधा व्यापार कहते हैं।
इस प्रकार कह सकते हैं कि शब्द को सुनते ही अथवा पढते ही श्रोता या पाठक उसके सबसे सरल, प्रचलित अर्थ को बिना अवरोध के ग्रहण करता है, वह अभिधा शब्द शक्ति कहलाती है।
अभिधेयार्थ शब्द ’वाचक’ कहलाता है तथा प्राप्त अर्थ वाच्यार्थ कहलाता है। अभिधा शब्दशक्ति के उदाहरण-
– राजा दशरथ अयोध्या के राजा थे।
– गुलाब का फूल बहु संुदर है।
– गाय घास चर रही है।
उपर्युक्त सभी वाक्यों के अर्थ ग्रहण में किसी प्रकार का अवरोध नहीं है।

2.लक्षणा शब्दशक्ति-

जब किसी शब्द के मुख्यार्थ में बाधा हो या अभिधा से अभीष्ट अर्थ का बोध न हो तब अन्य अर्थ किसी लक्षण पर अथवा दीर्घ काल से माने जा रहे रूढ अर्थ पर आधारित होता है।

लक्षण शब्दशक्ति के दो भेद इस प्रकार हैं-

(अ) पुलिस देख चोर ’चैकन्ना’ हो गया।
इसमें चोर द्वारा ’चैकन्न’ होने का अर्थ है-सजग हो जाना, सावधान हो जाना या अपने बचाव का उपाय सोच लेना। जबकि चैकन्ना का शब्दिक अर्थ हैं-चै=चार, कन्ना=कान अर्थात् ’चार’ कान वाला अतः दो की जगह चार कान कहने का तात्पर्य हे कानों का अधिकाधिक उपयोग करना, उनका पूरा लाभ उठाना। अतः यह अर्थ लक्षण पर आधारित हुआ। अतः यह प्रयोजनवती लक्षण कहलाता है।
इसी प्रकार उदाहरण –
(ब)राजेश का पुत्र तो ’ऊंट’ हो गया है।
इसमें ’ऊट’ का अर्थ है- अधिक लंबा होना। अब यह अर्थ ’रूढि’ के आधार पर लिया गया है। अतः यह रूढा लक्षणा कहलाता है। इस प्रकार लक्षणा शब्दशक्ति में लक्षण या प्रयोजन तथा रूढि द्वारा अर्थ ग्रहण किया गया है।
लक्षण शब्द शक्ति के अन्य उदाहरण-
– लाला लाजपत राय पंजाब के शेर हैं।
– सारा घर मेला देखने गया है।
– नरेश तो गधा है।
– वह हवा से बातें कर रहा था।
– सैनिकों ने कमर कस ली है।
उक्त उदाहरणों में ’शेर’, ’घर’, ’गधा’, ’हवा’, ’कमर कसना’ आदि लाक्षणिक शब्द हैं जिनके लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण किए जायेंगे।

3.व्यंजना शब्दशक्ति-

जब किसी शब्द का अर्थ न अभिधा से प्रकट होता है न लक्षणा से बल्कि कोई अन्य अर्थ ही प्रकट होता है। वहांॅ व्यंजना शब्दशक्ति होती है।
’व्यंजना’ का अर्थ है विकसित करना, स्पष्ट करना, रहस्य खोलना। अतः किसी शब्द का छुपा हुआ अन्य अर्थ ज्ञात करना ही व्यंजना शब्दशक्ति कहलाती है। इसमें कथन के संदर्भ के अनुसार एक ही शब्द के अलग-अलग अर्थ प्रकट होते हैं तो कभी श्रोता या पाठक की कल्पना शक्ति कोई नया अर्थ गढ लेती है। इस प्रकार व्यंजना शब्दशक्ति विविध आयामी अर्थ अभिव्यक्ति का सशक्त माध्य है, जैसे-’संध्या हो गई।’ वाक्य का आथ्ज्र्ञ चरवाहे के लिए घर लौटने का समय है तो पुजारी के लिए पूजन-वंदन का समय है।

व्यंजना शब्दशक्ति से प्राप्त अर्थ की दो भागों में विभक्त कहते हैं-

(अ) शाब्दी व्यंजना-

जब व्यंजना शब्द पर निर्भर हो, शब्द बदल देने से अर्थात् पर्याय रख देने से अर्थ बदल जाता हो वहांॅ शाब्दी व्यंजना होती हैं क्योंकि अभीष्ट अर्थ के लिए वही शब्द आवश्यक है, जैसे-
चिरजीवो जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि, ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।
यहांॅ ’वृषभानुजा’ का अर्थ राधा तथा गाय है वहीं ’हलधर’ के भी दो अर्थ बलराम तथा बैल हैं। अतः यहांॅ शब्द का चमत्कार इन शब्दों के पर्याय शब्द रख देने पर नहीं रह सकता। शाब्दी व्यंजना का अन्य उहाहरण है-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
इसमें ’पानी’ शब्द के तीन अर्थ (चमक, सम्मान एवं जल) उसके पर्याय रख देने पर नहीं रहेंगे।

(ब) आर्थीव्यंजना –

जब शब्दार्थ की व्यंजना अर्थ पर निर्भश्र रहती है। उसका पर्याय रख देने पर भी अभीष्ट की पूर्ति हो जाती है वहांॅ आर्थी व्यंजना होती है। आर्थी व्यंजना में बोलनेवाले, सुननेवाले, प्रकरण, देशकाल, कंठस्वर, आदि का बोध कराती है, जैसे-
सघन कंुज, छाया सुखद, सीतल मंद समीर।
मन ह्वै जात अजौं वहै, वा यमुना के तीर।।
इसमें गोपिका कृष्ण के साथ बिताये यमुना तट की लीलाओं को याद कर रही हैं। जो बातें वह कहना चाहती है, हर्दय के जिन भावों का प्रवाह वह व्यक्त करना चाहती है वह समस्त भाव संसार यहांॅ व्यक्त हो गया है।

शब्द-शक्तियों की तुलनात्मक तालिका

अभिधालक्षणाव्यंजना
(1) मुख्यार्थलक्ष्यार्थव्यंग्यार्थ
(2) सर्वविदति सरलार्थरूढ या प्रयोजनार्थसंदर्भ के अनुसार अभिप्रेत अर्थ
(3) तुम्हारा पुत्र मूर्ख है।तुम्हारा पुत्र गधा है।तुम्हारा पुत्र तो वृहस्पति का अवतार है
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