February 7, 2025

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व्यक्तित्व का अर्थ ,प्रकार ,विशेषता

व्यक्तित्व शब्द अग्रेजी भाषा के पर्सनेल्टी शब्द से बना है। और अग्रेजी भाषा  का पर्सनेल्टी शब्द लैटिन भाषा के परसौना शब्द से बना है जिसका शब्दिक अर्थ है− नकली चेहरा/मुखौटा/नकाब
व्यक्तित्व का अर्थ ,प्रकार ,विशेषता

व्यक्तित्व

व्यक्तित्व शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग – एडलर ने किया।

व्यक्तित्व मनोविज्ञान का जनक – एडलर

− जीवन शैली के समप्रत्यय का प्रतिपादक – एडलर

हीन मनोग्रन्थियो का प्रतिपादक – एडलर

− व्यक्तित्व का अध्ययन करने वाली मनोविज्ञान की प्रथम विचारधारा या सम्प्रदाय –मनोविश्लेषण वाद (प्रतिपादक – सिगमण्ड फ्रायड)

व्यक्तित्व का सर्वप्रथम विभाजन 400 र्इ. पू. युनानी चिकित्सक –हिथोक्रेटीज/हिथोक्रेसीज ने द्रव्य आर चिकित्सा के आधार पर किया आर व्यक्तित्व के चार प्रकार बताये।

द्रव्य और चिकित्सा के आधार व्यक्तित्व

  1. रक्त प्रधान व्यक्तित्व
    1. कफ प्रधान व्यक्तित्व
    2. कालापिन प्रधान व्यक्तित्व
    3. पिलापिन प्रधान व्यक्तित्व

 व्यक्तित्व का अर्थ

व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व की परिभाषा क्या है ?

व्यक्तित्व की परिभाषा – व्यक्तित्व शब्द अग्रेजी भाषा के पर्सनेल्टी शब्द से बना है। और अग्रेजी भाषा  का पर्सनेल्टी शब्द लैटिन भाषा के परसौना शब्द से बना है जिसका शब्दिक अर्थ है− नकली चेहरा/मुखौटा/नकाब

व्यक्तित्व की परिभाषा की हम साधारण शब्दों में समझे तो व्यक्तित्व का अर्थ या परिभाषा है किसी व्यक्ति के बाहय और आन्तरिक स्वरूप |

किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व के बाहरी स्वरूप की प्राथमिकता मानी जाती है लेकिन समय के साथ आन्तरिक स्वरूप को भी माना गया |प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हो जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होतीं। इन्हीं गुणों एवं विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति के इन गुणों का समुच्चय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है।

व्यक्तित्व के व्यापक अर्थ में व्यक्ति के बाहरी और आंतरिक दोनो पक्षो को शामिल किया जाता है।

  1. बाहरी पक्ष− बाहरी पक्ष के आधार पर जब व्यक्तित्व काअध्ययन किया जाता है तो उसे सतरी। उपरी दृष्टि कोण कहा जाता है।

व्यक्तित्व के बाहरी पक्ष में व्यक्ति के रूप रंग सुंदरता, शारीरिक बनावट, वेशभुषा, रीति रिवाज, खान पान आदि सभी को शामिल किया  जाता है।

व्यक्तित्व का ब्राहरी पक्ष किसी दूसरे व्यक्ति को तुरंत प्रभावी करता है, लकिन व्यक्तित्व का ब्राहरी पक्ष अस्थायी पक्ष माना जाता है।

  • आंतरिक पक्ष− आंतरिक पक्ष के आधार पर जब व्यक्तित्व का अध्ययन किया जाता है तो  उसे गहन दृष्टिकोण, मानकीय दृष्टिकोण, प्रक्षेणात्मक दृष्टिकोण कहा जाता है।

व्यक्तित्व के आंतरिक पक्ष में मानसिक शक्त्या, संवेगात्मक संतुलन, निर्णय क्षमता, समस्या समाधान, नेतृत्व क्षमता आदि सभी को शामिल किया जाता है।

आंतरिक पक्ष ही व्यक्तित्व का स्थायी पक्ष माना जाता है जो जीवन पर्यंत व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।

सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व – सवेंग स्थिर व्यक्तित्व को माना जाता है।

व्यक्तित्व की परिभाषा−

आलपोर्ट− व्यक्तित्व उन मनौवेदिक अवस्थाआं का गत्यात्मक संगठन हे जो वातवरण के साथ अपूर्व समायोजन स्थापित कर लेता है

पार्करहम जो कुछ भी है उसमें 90 प्रतिशत वंशानुक्रम आर 10 प्रतिशत  वातावरण  है।

एडलरव्यक्तित्व व्यक्ति के जीवन जीने का एक ढंग है।

मनव्यक्तित्व व्यक्ति का एक व्यवहार है।

रेक्स नाइटव्यक्तित्व समाज के द्वारा मान्य आर अमान्व गुणो का एक मिश्रण  है।

वैलेन्टाइनव्यक्ति, जन्म जात आर अर्जित प्रवृतियों का एक योग/मिश्रण है।

गिलफोर्डव्यक्तित्व व्यक्ति के समस्त गुणो का योग है।

वुडवर्थ व्यक्तित्व व्यक्ति की समस्त विशेषताओ का एक सार है।

व्यक्तित्व की विशेषता−

व्यक्तित्व की विशेषता निम्न है |

  1. व्यक्तित्व की सबसे प्रमुख विशेषता−आत्म चैतन
  2. व्यक्तित्व में आत्म प्रबंधन व आत्मनियंत्रण पाया जाता है।
  3. व्यक्तित्व में सामाजिकता, सहयोग, नैमिकता, चरित्र आदि सभी विशेषता पार्इ जाती है।
  4. सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व संवेग, स्थिर माना जाता है।
  5. व्यक्तित्व न तो पूर्णतया शारीरिक होता है आर न ही मानसिक होता है।
  6. व्यक्तित्व को वंशानुक्रम आर वातावरण दोनो पभावित करते है।
  7. व्यक्तित्व हमेशा ही निर्माण की प्रक्रिया में रहता है।
  8. व्यक्तित्व आंतरिक आर ब्राहरी दोनों होते हैं।
  9. व्यक्तित्व लक्ष्य केन्द्रित होता है।
  10. व्यक्तित्वमें शारीरिक आर मानसिक स्वास्थय अधिक महत्व देता है।
  11. व्यक्तित्व में व्यक्ति के सभी गुण व विशेषताओ को शमिल किया जाता है।

व्यक्तित्व पर मनोवैज्ञानिक विचार

  1. हेनरी मुर्रे− व्यक्तित्व का निर्माण ही व्यक्तित्व का विकास है।
  2. एडलर− व्यक्तित्व के निर्माण आर विकास की सबसे अच्छी अवस्था शैशवावस्था (जन्म से 2 माह)
  3. कैटल− व्यक्तित्व के निर्माण आर विकास की सबसे अच्छी अवस्था शैशवावस्था
  4. सिगमण्ड फ्रायड− व्यक्तित्व के निर्माण आर विकास  की सबसे अच्छी अवस्था शैशवास्था (4−5 वर्ष)
  5. युंग/जुग− व्यक्तित्व के निर्माण आर विकास को सबसे अच्छी अवस्था−मध्यावस्था
  6. आलपोर्ट− व्यक्तित्व के निर्माण आर विकास की सबसे अच्छी अवस्था किशोरावस्था।

व्यक्तित्व का मापन

व्यक्तित्व का मापन की प्रमुख दो विधिया है−

अ) प्रक्षेपी विधि आर आ) अप्रक्षेपी विधि

  • प्रक्षेपी विधि−

प्रक्षेपी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सिगमण्ड फ्रायड ने किया।

प्रक्षेपी विधियों में अचेतन मन का अध्ययन किया जाता है।

प्रक्षेपी विधियों में किसी विषय वस्तु को बालक पर थौपा जाता है।

प्रक्षेपी विधियो में बालक के व्यक्तित्व का मापन करने के लिए बालक को कुछ कार्ड रेखाचित्र दिखाये जाते है जिनका उद्देश्य बालक में संवेगात्मक उतैजना पैदा करना।

टी ए टी−

प्रतिपादक – मार्गन व मूर्रे

अन्यनाम –  प्रासांगिक अर्न्तबोध परीक्षण

           कथानक बोध परीक्षण

           कहानी लेखन परीक्षण

           थामेटिक अपरेशिएसन टेस्ट (टी ए टी)

इसमें 30 कार्ड होते है जो काले व सफेद रंग के बने होते है।

1 खाली कार्ड कहानी लिखने को दिया जाता है।

10 कार्ड महिला चित्र, 10 कार्ड पुरूष चित्र, 10 कार्ड पर महिला व पुरूष दोनों के चित्र बने होते है।

जिसे बालक पर इस विधि को काम में लिया जाता है उसे न्युनतम 5 आर अधिकत्म 20 कार्ड दिखाये जाते है।

कार्ड देखने के लिए कोर्इ समय सीमा निर्धारित नहीं है।

कार्ड देखने के बाद बालक को कहानी लिखने को कहा जाता है। जिसके लिए 5 मिनट का समय दिया जाता है।

बालक कहानी में जिन शब्दों विचारों आर संवेगो को काम में लेता है। मनोवैज्ञानिक उन्हीं का अध्ययन करके बालक के व्यक्तित्व की घोषणा कराते  है।

टी ए टी परीक्षण में 14 वर्ष से अधिक आयु के बालको के लिए उपयोगी है।

टी ए टी परीक्षण का भारतीयकरण उमा चौधरी के द्वारा किया गया।

सी ए टी–

प्रतिपादक− लियोपोल्ड ब्लैक

सी ए टी चार्इल्ड अपरेशिएसन टैस्ट

इसमें 10 कार्ड होते है जो काले व सफेद रंग के बने होते है।

इन कार्डो  पर विदेशी जानवरो के चित्र बने होते है जो मुनष्य की तरह कार्य आर व्यवहार करते दिखाये गये।

बालक को कार्ड दिखाने के बाद कहानी लिखने को कहा जाता है। और उसी का अध्ययन करके मनोवज्ञानिक बालक के व्यक्तित्व की घोषणा कर देता है।

सी ए टी परीक्षण 3 से 11 वर्ष के बालकों के लिए उपयोगी है। (14 वर्ष से कम)

सी ए टी परीक्षण का भारतीयकरण – उमा चौधरी

सी ए टी परीक्षण भारतीय बालको पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें विदेशी जानवरों के चित्र बने है।

स्याहि धब्बा परीक्षण (आर्इ बी टी)−

 प्रतिपादक− हरमन रोशी

− इसमें 10 कार्ड होते है जिसमें से 5 काले व सफेद, 2 लाल और 3 कार्ड प्लस्टर (विभिन्न रंग) कलर के होते है।

− जिस बालक पर इस विधि को लागू किया जाता है उसे सभी 10 कार्ड दिखाये जाते है। कार्ड दिखाने के बाद बालक से कुछ प्रश्न पुछे जाते है उनके उतर बालक लिखित या मौखिक रूप से दे सकते है।

− आर्इ बी टी परीक्षण में बालक के तीनों पक्ष ज्ञानात्मक, भावनात्मक और क्रियात्मक का अध्ययन किया  जाता है।

− यह परीक्षण  13 से 19 वर्ष के बालकों के लिए उपयोगि होता है।

− भारतीयकरण  − उमा चौधरी।

वाक्य पूर्ति परीक्षण−

प्रतिपादक – पार्इन व टेण्डलर

इसमें रिक्त स्थानों के आधार पर बालक को कोर्इ कहानी या वाक्य  दिये जाते है जिन्हें पूरा करने के लिए बालक को कुछ शब्द दिये जाते है।

बालक जिन शब्दों  को काम में लेता है उन्ही का अध्ययन करके मनोवैज्ञानिक बालक के व्यक्तित्व की घोषणा कर देते है।

खेल व नाटक विधि−

प्रतिपादक− जे. एल. मुनरो/मुनेरो

इस विधि में बालक को अपने अचेतन मन की दमिन इच्छाओ को पूरा करने के लिए कुछ अधिकार और स्वंतत्रता दी जाती है।

यह विधि गंभीर रोग से पीडित लोगों तथा कलाकारों के लिए उपयोगी मानी जाती  है।

शब्द साहचर्य विधि−

प्रतिपादक−गाल्टन

इस विधि में बालक के सामने कुछ उद्दीपक शब्दो को प्रस्तुत किया जाता है इन शब्दों के प्रतिक्रिया के रूप में बालक जिन शब्दों को काम में लेता है। मनोवैज्ञानिक उनही का अध्ययन करके व्यक्तित्व की घोषणा कर देते है।

  • अप्रक्षेपी विधि− इन विधियों में बालक के चेतन मन का अध्ययन किया जात  है।
  • अर्न्तदर्शन विधि− प्रतिपादक−विलियम वुण्ट व टिंचनर

− टिंचनर अंदर की और देखना या अंदर की और झांकना ही अर्न्तदर्शन है।

यह मनोविज्ञान के अध्ययन की सबसे प्राचीन विधि है।

इस विधि में मनोवैज्ञानिक महत्व नहीं दिया जाता  है।

इस विधि में व्यक्ति स्वयंम विभिन्न परिस्थितियों में अपने कार्य और व्यवहार का अध्ययन कराता है और स्वंयम ही निष्कर्ष निकालता  है।

यह एक अमनोवैज्ञानिक व अवैज्ञानिक विधि है।

  • व्यक्ति इतिहास विधि− प्रतिपादक−टाइडमैन

इस विधि में गर्भावस्था से लेकर वर्तमान अवस्था तक बालक के विकास का अध्ययन किया जाता है।

बालक के माता−पिता, परिवार के सदस्य, अध्यापक मित्र आदि सभी से बालक के बारे में सूचना जी जाती है।

अन्य नाम – कैस स्टडी, जीवन गाथा, जीवन वृतांत, कहानी लेखन

व्यक्ति इतिहास विधि असमान्य बालको के व्यवहार का पता लगाने और अध्ययन करने की सबसे उपयोगी विधि है।

प्रश्नावली विधि

प्रतिपादक−वुडवर्थ

इसे कागज−पैन्सिल विधि भी कहा जाता है।

वुडवर्थ ने प्रश्नावली विधि के चार प्रकार बताये है।

  • बंद प्रश्नावली− दिये गये प्रश्नो के उतर सही−गलत या रार्इट या रोंग के आधार पर दिये जाते है।
    • खुली प्रश्नावली− दिये गये प्रश्नों के उतर लिखित रूप में
    • चित्रित प्रश्नावली− छोटे बच्चों, अनपढ लोगो और मंद बुद्धि बालको के लिए होता है इसमें विभिन्न चित्र आकृति या वस्तुओं को काम में लिया जाता है।
    • मिश्रित प्रश्नावली− एक ही प्रश्नावली में तीनों ही प्रकार के प्रश्नों को शामिल किया जाता है।

     नोट− गत्यात्मक मनोविज्ञान का जनक – वुडवर्थ

वुडवर्थ−मनोविज्ञान ने अपने विकास क्रम में सबसे पहले आत्मा को छोडा, फिर मन को भूला, फिर चेतना का त्याग किया और वर्तमान में अपना संबंध व्यवहार से जोड रखा है।

नोट− बाल अध्ययन में प्रश्नावली विधि का प्रयोग स्टेनलेहाल ने किया।

  • समाजमिति− विधि प्रतिपादक− जे एल मुनरो/मुनेरो

यह व्यक्तित्व मापन की एक सामुहि विधि है।

इस विधि में एक समय में एक साथ सम्पूर्ण समाज, सामाजिक संरचना, सामाजिक समूह, सामाजिक गतिविधिया, क्रियाकलाप आदि सभी को अध्ययन किया जाता है।

  • स्वप्न विश्लेषण विधि− प्रतिपादक−सिगमण्ड फ्रायड

इस विधि में बालक को जो भी सपने आने है उन्हे बालक लिखित या मौखिक रूप से मनोवैज्ञानिक को बताता है।

सिगमण्ड फ्रायड ने अपने सपनों में प्रकृति का अद्भूत रहस्य कहा है।

व्यक्तित्व के सिद्धांत

मनोविश्लेषण सिद्धांत

− प्रतिपादक−सिगमण्ड फ्रायड

फ्रायड ने अपने सिद्धांत में व्यक्तित्व को तीन भागो में बाटा है।

  • इड/इद्रम/इद्र−

इसमें नैतिकता, चरित्र, सदगुण आदि सभी का अभाव पाया जाता है।

इड की प्रकृति पशुओ के सामान होती है। और इड को अचेतन मन के साथ जोडा जाता है।

अचेतन मन 9/10 भाग होता है। जिसमें दमित र्इच्छा और सुख का निवास  होता है।

फ्रायड ने अचेतन मन की तुलना बर्फ के टुकडे (हिम शिला) के साथ की है।

इड व्यक्ति के कुप्रबंधन व पतन के लिए जिम्मेदार है।

  • इगो/अहम−

यह वर्तमान और वास्तविक अवस्था है जिसमें व्यक्ति सामाजिक मान सम्मान पद प्रतिष्ठा और पहचान को प्राप्त करना चाहता है।

− र्इगो की प्रकृति मनुष्य के सामान होती है और इसे चेतन मन के साथ जोडा जाता है।

− चेतन मन 1/10 भाग होता है।

  • सुपर इगो/पराअहम−

यह सामाजिकता सहयोग नैतिकता, चरित्र और सदगुणो पर आधारित है।

इसमें व्यक्ति अपनी स्वार्थ की प्रवृति का त्याग कर देता है तथा लोकहित के कार्य करना शुरू कर देता है।

सुपर इगो की प्रकृति देवताओ के समान होती है और इसे अर्द्धचेतन मन के साथ जोडा जाता है।

  • शील गुण सिद्धांत− प्रतिपादक− इसमें कैटल व आलफेर्ट को शामिल किया जायेगा।

आचरण और व्यवहार के वे नियम जिन्हें समाज अपनी मान्यता दे देता है, शीलगुण के नाम से जाना जाता है।

  • सामान्य शील गुण− इन्हें सार्वभौमिक शीलगुण  भी कहा जाता है। ये सभी लोगो में अनिवार्य रूप से पाये जाते है। लेकिन इनकी मात्रा सभी लोग में अलग−अलग पार्इ जाती है। इनमें दया, करूणा, प्रेम, सहयोग, सद्भावना, नैतिकता, चरित्र आदि सभी को शामिल किया जाता है।
    • विशिष्ट/विशेषक शील गुण−ये वे शील गुण होते है जिन्हें किसी व्यक्ति विशेष के साथ जोडा जाता है और इन्हीं के आधार पर व्यक्ति की समाज में मान सम्मान और पहचान बनी रहती है।

जैसे− सत्य और अहिंसा ( महात्मा गांधी )

   पंचशील व गुट निरपेक्षता ( जवाहर लाल नेहरू )

   कैटल ने व्यक्तित्व के संबंध में पी एफ – 16 सारणी का प्रतिपादन किया है।

माँग सिद्धांत−

प्रतिपादक – हेनरी मुर्रे

व्यक्ति जिन वातारवरण में  रहता है वह वातावरण व्यक्ति से 40 प्रकार की मांगे करता है यदि व्यक्ति इन माँगों को पूराकर देता है व्यक्ति कावातवरण मे सामायोजन हो जाता है ता व्यक्तित्व प्रभावशाली बन जाताहै और यदि व्यक्ति का समायोजन नही होता है तो व्यक्तित्व कुसमायोजित बन जाता है।

जीव सिद्धांत−

प्रतिपादक− गोल्ड रूटीन

प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को महान और प्रभावशाली बनाना चाहता है लेकिन वही व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली और महान बना सकता है। जो जीवन में सफलता को प्राप्त करे।

व्यक्तित्व के प्रकार−

  1. युंग/जुग के अनुसार−

युग की विचारधारा – विश्लेषणात्मक

युग ने व्यक्तित्व के लिए मन/साइके शब्द का प्रयोग किया है।

युग ने सामाजिकता और मनोविज्ञानकता के आधार पर व्यक्तित्व को दो भागों में बांटा है। अर्न्तमुखी व बर्हिमुखी

  • अर्न्तमुखी – एकांत प्रिय, चुपचान रहने वाले, अपने काम से काम रखने वाले, सामाजिकता और सहयोग की भावना का अभाव, मित्रो की संख्या कम।
  • बर्हिमुखी−सामाजिकता व सहयोग की भावना अधिक, मित्रो की संख्या अधिक, वाकपट् आदि

युंग ने मन को दो भागों में बाटा है।

चेतन मन−  इसे अहम् के साथ जोडा जाता है।

अचेतन मन− इसे अहम् के साथ नहीं जोडा जाता।

युंग ने अचेतन मन को दो भाग में बाटा है।

  • व्यक्तित्व अचेतन− यह अचेतन मन का सबसे उपरी हिस्सा है जिसमें व्यक्ति की दमित इच्छाओ, भूली−बिसरी यादो, पोराणिक कथाओ आदि सभी को शामिल किया जाता है।
  • सामुहिक अचेतन−यह अचेतन मन का निचला हिस्सा है जिसमें समाज और पूर्वजों की पौराणिक कथाओ मान्यताओ, भूली बिसरी यादो सभी को शामिल किया जाता है।

नोट –अधिगम सर्वाधिक प्रभावित अनुकरण से होता है।

आदि रूप− सामुहिक अचेतन मन की दमित दच्छाअ को जिसके माध्यम से अभिव्यकन किया जाता है उसे आदि रूप कहा जाता है।

युंग ने चार प्रकार का आदि रूप बताया है।

  • एनिमा−पुरूषो में महिलाओ जैसे गुण
  • एनिम्स−महिलाओ में पुरूषो जैसे गुण
  • आत्मन−व्यक्ति की समस्त विशेषताए और गुण
  • छाया− व्यक्ति का समाज विरोधी व्यवहार, अवगुण, व दोष (घृणा, इर्ष्या)

युंग ने मन/व्यक्तित्व के चार कार्य बताये है।

संवेदना, चितंन, भाव और अर्न्तज्ञान

युंग ने व्यक्तित्व को चार अवस्थाओ में बाँटा है।

बाल्यवस्था, प्रारम्भिक यौवन अवस्था, मध्यावस्था और प्रौढावस्था।

युंग ने बाल्यवस्था के 3 भागो में बांटा है।

अराजक, राजतन्त्रिय व द्वैतवादी

नोट− युंग का मानना है कि बालक में राजतन्त्रिय अवस्था  ही अहम की भावना पैदा करती है।

उभ्यमुखी व्यक्तित्व – नमन व याकार ने अर्न्तमुखी व बर्हिमुखी व्यक्तित्व को मिश्रित कर दिया और उभ्यमुखी का प्रतिपादन किया।

शैल्डन के अनुसार व्यक्तित्व

शैल्डन ने शारीरिक संरचना के आधार पर व्यक्तित्व को 3 भागों में बांटा है।

गोलाकृति/एण्डोमार्फिक− ये गोल मटोल, मोटे ताजे, भोजन प्रेमी, बढे पेट वाले, विनोद प्रिय स्वभाव आदि सभी विशेषता वाले होते है।

आयाताकृति/मीसो मार्फिक− ये दृष्ट पुष्ट, स्वस्थ, जोशीले, कार्य क्षमता अधिक, लक्ष्य केन्द्रित व्यवहार आदि सभी विशेषता वाले होते है। शैल्डन ने इसे सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व माना है।

लम्बाकृति/एक्टोमार्फिक−ये दुबले, पतले, कमजोर, आलसी, स्वार्थी, चिछचिडा स्वभाव, कार्यक्षमता कम, आदि सभी विशेषता वाले होते है। शैल्डन ने इसे सबसे निम्न स्तर का व्यक्त्तित्व माना है।

क्रेचमर/क्रेशमर के अनुसार व्यक्तित्व

क्रेचमर ने शारीरिक संरचना तथा अन्तः स्त्रावि ग्रंन्थियो  के आधार पर व्यक्तित्व को चार भागों में बाँटा है।

गोलाकाय/पिकनिक

सुडौलाकाय/एथलेटिक

लम्बाकाय/एस्थेनिक

मिश्रित कार्य/ डार्इ प्लास्टीक

स्प्रेन्गर के अनुसार व्यक्तित्व

नैतिकता व मूल्यों के आधार पर 6 भागो में बांटा है−

  1. सैद्धान्तिक व्यक्तित्व−साहित्यकार, लेखक, दार्शनिक
  2. सौदांर्यात्मक व्यक्तित्व−कला कौशल से संबंधित−चित्रकार, संगीतकार, मूर्तिकार।
  3. राजनीतिक व्यक्तित्व−राजनेता, कुटनीतिज्ञ, मंत्री।
  4. सामाजिक व्यक्तित्व−समाज सुधारक, समाजसेवी।
  5. आर्थिक व्यक्तित्व− उघोगपति, व्यवसायी, दुकानदार।
  6. धार्मिक व्यक्तित्व−संत, पादरी, पुजारी, साधु, महात्मा।

फीडमैन और रोजेनमैन के अनुसार व्यक्तित्व

इन्होंने ने टाइप ए और टाइप बी व्यक्तित्व का प्रतिपादन किया।

मार्गन ने टाइप सी व्यक्तित्व का प्रतिपादन किया।

पाल कोस्टा व राबर्ट केके ने व्यक्तित्व  के पंच कारक माडल सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

  1. अनुभव के लिए खुलापन
  2. बर्हिमुखता
  3. सहमति शीलता
  4. मनस्ताप
  5. कर्तव्य निष्ठता

आइजेक के अनुसार व्यक्तित्व

अर्न्तमुखता−बर्हिमुखता

संवेगात्मक स्थिरता−अस्थिरता

मनस्तापिता(मनस्ताप)

भागवद् गीता के अनुसार व्यक्तित्व−

कर्म व गुण के आधार पर व्यक्तित्व को 3 भागो में बांटा है।

सतो गुणी –सबसे अच्छा

रजो गुणी

तमो गुणी

आधुनिक दृष्टि कोण में व्यक्तित्व

ये 3 प्रकार के व्यक्तित्व के बारे में बताता है |

  1. कर्म प्रधान व्यक्तित्व
  2. भाव प्रधान व्यक्तित्व
  3. विचार प्रधान व्यक्तित्व

पाराप्रेक्सेज− इस शब्द का प्रयोग सिगमण्ड फ्रायड ने किया। इसका अर्थ है व्यक्ति अपने दैनिक जीवन मे और पूरे जीवन में जो भी भूल व गलतियाँ करता है, पारा प्रेक्सेज कहलाता है।

जैसे− लिखने, खाने, वस्तु लाने आदि सभी की मूल। 

व्यक्तित्व का अर्थ ,प्रकार ,विशेषता
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