राजस्थान का इतिहास प्राचीन समय से ही भक्ति और संतो के नाम से प्रसिद्ध रहा है | राजस्थान में बहुत से संत प्रसिद्ध हुए है | राजस्थान में संतो को ईश्वर के स्वरूप माना गया है , राजस्थान में बहुत सारे संत संप्रदाय है , विभिन्न प्रकार के संतो और उनकी भक्ति के विभिन्न आधारों पर संतो और उनको अनुययियो ने विभिन्न संत संप्रदाय का निर्माण किया है | राजस्थान के संत संप्रदाय निम्न प्रकार से है |
राजस्थान के संत सम्प्रदाय
राजस्थान की भक्ति आंदोलन का प्रवर्तक संत धन्ना को माना जाता है।
राजस्थान में शैव और वैष्णव सम्प्रदाय− शैव सम्प्रदाय(नाथ / पाशुपत )
- पाशुपत सम्प्रदाय − मुख्यपीठ – एकलिंग जी का मंदिर – कैलाश पुरी (उदयपुर)
- बैरागी नाच सम्प्रदाय− मुख्यपीठ – राताडूंगा, पुष्कर (अजमेर)
- मान नाथ (नाथी सम्प्रदाय)− मुख्य पीठ – महामंदिर (जोधपुर)
- भर्तृहरि / कनफडे नाथों की पीठ संप्रदाय –मुख्यपीठ – भर्तृहरि, अलवर
वैष्णव सम्प्रदाय− रामावत / रामानंदी संम्प्रदाय
मुख्यपीठ – गलताजी, जयपुर
संस्थापक – कृष्णदास, पयहारी
रसिक सम्प्रदाय – मुख्य पीठ – रेवासा(सीकर)
संस्थापक – अग्रदास
इस सम्प्रदाय में भगवान राम के रसिक रूप की पूजाकी जाती है।
सनकादि / निम्बार्क / हंस / राधावल्लभ सम्प्रदाय –
मुख्य पीठ – सलेमाबाद, किशनगढ (अजमेर)
संस्थापक – परशुराम देवाचार्य
वल्लभ सम्प्रदाय – इसकी राजस्थान में 6 पीठ है।
- श्री नाथ जी – श्री नाथ द्वारा
- श्री विट्ठलनाथ जी – श्री नाथ द्वारा
- श्री द्वारकाधीश जी – कांकरोली (राजसमंद)
- श्री मदनमोहन जी – करौली
- श्री मथुरेश जी – कोटा
- श्री गोकुल चंद जी – कामां (भरतपुर)
इस संप्रदाय में भगवान के बाल रूप की पुजा की जाती हैं॥
अर मंदीर को हवेली कहा जाता है ।
5 गडीय सम्प्रदाय:→ मुखयपीठ गाविदं देव जी का मंदिर जयपुर
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