राजस्थान कला और संस्कृति के लिए माना जाता है , राजस्थान में बहुत ही प्रसिद्ध कलाकार हुए है | राजस्थान में लोक संगीत की बहुत ही मान्यता है तथा विश्व स्तर पर राजस्थान के लोक संगीत की चर्चा होती है | राजस्थान के लोक संगीत में प्राचीन युद्धों , दन्त कथाओ , देवी – देवताओ का वर्णन होता है |
राजस्थान के लोक संगीत
1 . लोक गायन
2. संगीत जीवी जातियाँ
-
लोक गायन
- माण्ड गायन− माण्ड गायन का प्रचलन जैसलमेर से हुआ। बीकानेर की अल्लाह जिलाह बाई , जोधपुर की गवरी देवी आर जमीला बानो, जयपुर की बन्नो बेगम, उदयपुर की मांगी बाई मांड गायन के लिए जानी जाती है। अल्लाह जिलाबाई को 2012 राजस्थान रत्न और गवरी देवी को 2013 में राजस्थान रत्न दिया गया।
- चार बैत−पश्तो गायन शैली (अफगानिस्तान) पश्तो गायन शैली जिसका अब्दुल करीम खां निहंग द्वारा लोक शैली में प्रचलन किया।
टोंक क्षेत्र में लोकप्रिय।
इसका प्रयोग युद्ध के मैदान में सैनिको का उत्साह−वर्धन हेतु किया जाता था।
- तालबंदी – ताल ठोकना
मुगल सम्राट आरंगजेब द्वारा संगीत पर प्रतिबंद्ध लगाने पर संगीतकारों ने साधुआं के वेश में पूर्वी राजस्थान में संगीत का प्रचार−प्रसार किया। जिसे तालबंदी गायन का विकास हुआ।
-
संगीत जीवी जातियाँ
- कूलावत – जयपुर में निवास करने वाली संगीत जीवी जाति जो अपना संबंध तानसेन से जोडते है। नाम के साथ सेन लगाने है।
जयपुर के जमाल/जमील सेन ने वंदे मातरम् की धुन तैयार की।
- ढाढी−राजस्थान की संगीत जीवी जाति जो मध्यकाल में युद्ध के मैदान मे अपने गायन द्वारा सैनिको का उत्साह बढाते थे।
ढाढी – ढोलामारू गीत के लिये जाने जाते हे।
- राणा− मध्यकाल में युद्ध के मैदान में सैनिको के उत्साहवर्धन हेतु नगाडा बजाने का काम करते थे।
- मिरासी−पश्चिमी राजस्थान की संगीत जीवी जाति जो सारंगी वादन के लिए जानी जाती है। यह अपना पूर्वज गौड ब्रहम्णों को मानते है।
- जोगी−मेवात क्षैत्र की संगीत जीवी जाति जो पेडून का कडा आर शिवाजी का तयावला के गायन के लिए जाने जाते है।
- भोपा−पेशेवर पुजारी
जो लोकगायन के लिए जाने जाते है।
पाबूजी के भोपे – रावणहत्था – थोरी/ नायक
रामदेवजी के भोपे – तंदुरा − मेघवाल
गोगा जी के भोपे − डेरू − नायक
देवनारायण जी के भोपे − जंतर − गुर्जर
- राव−भाट−यजमानो की वंशावलियों का बखान करते है।
- लंगा− राजस्थान की संगीत जीवी जाति जो सुरो के लयात्मक उतार−चढाव के लिए जानी जाती हे।
प्रसिद्ध कलाकार –बूदं खाँ
- रावल−भगवान राम के जीवन की मुख्य घटनाअं का संगीत के साथ अभिनय करते है।
- भगतण−मध्यकाल में मंदिरों में नाचने−गाने का काम करने वाली महिलाएँ।
- पातर/पातुर−मांगलिक अवसरो पर गाने बजाने का काम करने वाली संगीत जीवी जाति।
- फदाली−कसार्इ आदि समुदाय में मांगलिक अवसरों पर गाने−बजाने का काम करने वाली जाति।
- जगजीत सिंह−विख्यात गजल गायक, जन्म−श्री गंगानगर
- पं. विश्व मोहन भटृ –विख्यात वीणा वादक, जयपुर
- मेहंदी हसन− पाकिस्तानी गजल गायक, जन्म−लुणां (झुंझुनु)
- रेशमा− पाकिस्तानी सूफी लोक गायिका, लोहा(चुरू)
More Stories
राजस्थान के संत सम्प्रदाय
राजस्थान के लोकनाटय के संस्थान
राजस्थान के लोकनाट्य