प्रकृति बनाम पोषण (Nature vs Nurture)
व्यक्ति या बालक के विकास में प्रकृति या पोषण (Nature vs Nurture) दोनों में कौन सहायक है इस पर सभी मनोवैज्ञानिको में मत भेद है , कुछ मनोवैज्ञानिको का मानना है की बालक का विकास व व्यक्तित्व उसके अनुवांशिक पर निर्भर करता है कुछ का मानना है की ये उसके पोषण अर्थात उसके लालन पालन पर निर्भर करता है |
सामाजिक मनोविज्ञान की एक अवधारणा है “प्रकृति बनाम पोषण” (Nature vs Nurture) जिसका प्रयोग व्यक्ति के जन्मजात गुण ( प्रकृति ) और उसके लालन – पोषण के समय मिले पर्यावरण या वातावरण के प्रभावों के द्वारा उसका विकास किस प्रकार से होता है |
प्रकृति बनाम पोषण (Nature vs Nurture theory) का सिद्धांत “सर फ्रांसिस गाल्टन” (Sir Francis Galton) द्वारा दिया गया था |
प्रकृति बनाम पोषण में अन्तर
प्रकृति
यहाँ पर प्रकृति का अभिप्राय एक बालक के जन्म जात गुण जो उसे उसके पूर्वजो से मिले है ,अर्थात बालक की प्रकृति उसके अनुवांशिक व वंशानुगत कारक जीन को दर्शाती है |
इसका साधारण शब्दों में अर्थ समझा जाए तो हम ये कह सकते है की जैसे माता-पिता ( पूर्वज ) होंगे वैसी ही संतति ( संतान ) होगी | प्रकृति इन विशेषताओं को संदर्भित करती है जो जन्मजात हैं। एक व्यक्ति विशिष्ट कौशल और विशेषताओं के साथ पैदा होता है। प्रकृति इस पहलू पर प्रकाश डालती है।
बालक के विकास में प्रकृति को मानने वाले वैज्ञानिक
जीन पियाजे (Jean Piaget)
सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) – Theory of aggression
नोआम चाम्सकी (Noam Chomsky) – Language Acquisition
पोषण
यहा पोषण का अभिप्राय वातावरण से है , जिसमे व्यक्ति या बालक के गुण उसके पर्यावरण या आस – पास के वातावरण पर निर्भर करते है | जिसका अर्थ है बालक का लालन – पोषण , सामाजिक वातावरण , संस्कृति ,परिवार |
पोषण के अंतर्गत बालक के आस पास का वातावरण आता है जैसे की वह किस देश में रहता है , वहा की संस्कृति कैसी है यदि बालक के आस पास अच्छा वातावरण है तो उस बालक के गुण भी अच्छे होंगे नही तो वो बुरी संगति में जायेगा |
बालक के विकास में पोषण को मानने वाले वैज्ञानिक
लिटिल अल्बर्ट (Little Albert) – Fear and Phobia Acqusition
Zimbardo
बंडूरा (Bandura) – Social Learning Theory
स्किनर (Skinner)
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