January 12, 2025

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कारक किसे कहते है ?

कारक की परिभाषा ,भेद और उदाहरण

’कारक’ का अर्थ होता हैं ’करनेवाले’, क्रिया का निष्पादक। जब किसी संज्ञा या सर्वनाम पद का संबंध वाक्य में प्रयुक्त अन्य पदों  व क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे ’कारक’ कहते हैं। “साधारण शब्दों में कहा जाए तो कारक वे हे जो वाक्य में प्रयुक्त शब्दों में मध्य संबंध में बताता है” 

विभिक्ति- कारक’ को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जानेवाले चिह्न विभक्ति कहलाता है। विभक्ति को परसर्ग भी कहते हैं। जैसे :- ने, को ,से, के लिए, 

भेद- हिंदी में कारक के आठ भेद हैं

(1) कर्ता कारक-

क्रिया करने वाले को व्याकरण में ’कर्ता’ कारक कहते हैं। कर्ता कारक का चिह्न ’ने’ होता है। यह संज्ञा अथवा सर्वनाम ही होता है तथा क्रिया से उसका संबंध होता है। विभक्ति का प्रयोग सकर्मक क्रिया के साथ ही होता है, वह भी भूतकाल में।
जैसे- कृष्ण ने नृत्य किया। श्याम ने खाना खाया।
मीना ने गीत गाया। उसने समय का ध्यान रखा होता तो गाड़ी मिल जाती ।

(2) कर्म कारक-

क्रिया का फल जिस शब्द पर पडता है उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ’को’ है। विभक्ति ’को’ का प्रयोग केवल सजीव कर्म कारक के साथ ही होता है, निर्जीव के साथ नहीं। जैसे-
– राधा ने कृष्ण को बुलाया।
– वह पत्र लिखता है।
– स्वाति काॅलेज जा रही है।
– राम ने किष्किन्धा का राज्य सुघ्रीव को दे दिया ।
आज्ञासूचक शब्दों में निर्जीव के लिए भी विभक्ति का प्रयोग होता है, जैसे- पुस्तक को मत फाडों। जीवो को परेशान मत करो।
– स्वाभाविक क्रिया में जैसे-
उसको भूख लगी है।
राम को बुखार हो रहा है।

(3) करण कारक-

करण का शब्दिक अर्थ है साधन। वाक्य में कर्ता जिस साधन या माध्यम से क्रिया करता है अथव क्रिया के साधन को करण कारक कहते हैं। करण कारक की विभक्ति ’से’’के द्वारा’ है, जैसे-
– मैं कलम से लिखता हॅूं। मैने गिलास से पानी पीया।
– सानिया बैट से खेलती है। मैंने दूरबीन से पहाडों को देखा।
करण कारक के अन्य प्रयोग इस प्रकार हैं-
क्रिया सम्पादित करने के क्रम में-
-प्रिया पेल्सिल से चित्र बनाती है।
के द्वारा/द्वारा
– मुझे दूरभाष द्वारा सूचना प्राप्त हुई।
– उसे डाकिए के द्वारा पत्र प्राप्त हुआ।
आज्ञाजनित वाक्य-
– ध्यान से अध्ययन करो।
– स्कूटर से नहीं साइकिल से स्कूल जाओ।
सीख-मेहनत से अच्छे अंक मिलते हैं।
रीति से-भिखारी क्रम से बैठे हैं।
गुण या स्थिति-

राम हर्दय से ही दयालु है।
वह स्वभाव से ही कंजूस हे।
मूल्य- सेब किस भाव से दे रहे हो?
कमी दिखाने के लिए-

बुखार से बहुत कमजोर हो गया।
– वह अक्ल से (अंधा/पैदल) है।
प्रार्थना/निवेदन-ईश्वर से सद्बुद्धि मांॅगे।

(4) संप्रदान कारक-

संप्रदान (सम्$प्रदान) का शब्दिक अर्थ है-देना। वाक्य में कर्ता जिसे देता है अथवा जिसके लिए क्रिया करता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। जब कर्ता स्वत्व हटाकर दूसरे के लिए दे देता है वहांॅ संप्रदान कारक होता है।
संप्रदान कारक की विभक्ति ’के लिए’, को’ है। ’के वास्ते, के निमित, के हेतु’ भी कह सकते हैं। जहांॅ क्रिया द्विकर्मी हो वहांॅ विभक्ति ’को’ का प्रयोग होता है, जैसे-
’के लिए’-
– सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए बलिदान दिया।
– लोगों ने बाढ पीडितों के लिए दान दिया।
– मैरिट में आने के लिए मेहनत करो।
’को’-
– राजा ने गरीबों को कम्बल दिए।
– पुलिस ने चोर को दण्ड दिया।

(5) अपादान कारक-

अपादान का अर्थ है-पृथक होना या अलग होना। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु या व्यक्ति का दूसरी वस्तु या व्यक्ति से अलग होने या तुलना करने का भाव हो वहांॅ अपादान कारक होता है।(अलग होने का भाव)
अपादान कारक की विभक्ति ’से’ है।
पृथकता के अलावा अन्य अर्थों में भी अपादान कारक का प्रयोग होता है, जैसे-
पृथकता-
– सुरेश छत से गिर गया।
– मेरे हाथ से गेंद गिर गई।
– विनोद विधालय से घर आया।
– नदी पहाड से निकलती है।
पहचान के अर्थ- यह मारवाड से है।
दूरी- घर स्कूल से दूर है।
तुलना-विमला सुनीता से छोटी  है।
शिक्षा-शिष्य गुरू से शिक्षा ग्रहण करता है।

(6) संबंध कारक-

शब्द का वह रूप जो दूसरे संज्ञा या सर्वनाम शब्दों से संबंध बतलाए, संबंध कारक कहलाता है।
संबंध कारक की विभक्ति का, के, की, रा, रे, री एवं ना, ने, नी है भेद इस प्रकार हैं-
जैसे-स्वामित्व
– अजय की पुस्तक गुम हो गई।
– अपना पर्स सम्हाल कर रखो।
– मेरा चश्मा बहुत कीमती है।
रिश्ता-
– वह राम का बेटा है।
– अमिताभ बच्चन कवि हरिवंशराय बच्चन के पुत्र हैं।
अवस्था-
– मेरी उम्र पचास वर्ष है।
– यह युवक तीस वर्ष का है।
कोटि/धातु-
– पांॅच मिट्टी के घडे लाओ।
– मैंने एक कांसे की कटोरी खरीदी है।
– मेरी साडी सिल्क की है।
प्रश्न-
– कक्षा अध्यापक का क्या नाम है ?
– आपके कितने पुत्र हैं?

(7) अधिकरण कारक-

वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते है।
अधिकरण कारक की विभक्ति है- में एवं पर’में’ का अर्थ है अंदर या भीतर तथा ’पर’ का अर्थ है- ऊपर। जैसे-
’में’-
– इस मंदिर में कई मूर्तियांॅ हैं।
–  मेरे पर्स में पैसे व ड्राइविंग लाइसेंस हैं
–  बगीचे में छायादार पेड है।
कभी-कभी ’में’ का प्रयोग  बीच या मध्य के रूप में भी होता है, जैसे-
– राम और श्याम में गहरी दोस्ती है।
– भारत की संस्कृति विश्व में विशेष स्थान रखती हैै।
– पी.टी. उषा का नाम श्रेष्ठ धावकों में है।
पर-
– मेज पर पुस्तक रखी है।
– पेड पर चिडिया बैठी है।
बहुतों में से किसी एक को श्रेष्ठ बताने के लिए-
– कक्षा में संजय सबसे बुद्धिमान है।

(8) संबोधन कारक

वाक्य में जब किसी संज्ञा को पुकारा जाए अथवा संबांधित किया जाए उसे संबोधन कारक कहते हैं। संबोधक में पुकारने, बुलाने एवं सावधान करने का भाव होता है।
संबोधन कारक के विभक्ति चिह्न हैं-हे, ओ, अरे
हे-भगवान! कैसा समय आ गया है?
हे प्रभु ! मेरा  पुत्र कहाँ  गया?
अरे-अरे! ये क्या कर रहे हो?
अरे!बच्चों शोर मत करो।
ओ-ओ खिलौनेवाले! बतलाना कैसे खिलौने लाये हो।

कर्म संप्रदान कारक में अंतर-
(अ) कर्मकारक में ’को’ का प्रभाव कर्म पर पडता है।
संप्रदान कारक में ’को’ विभक्ति से कर्म को कुछ प्राप्त होता है।

(ब) कर्म कारक में ’को’ विभक्ति का फल कर्म पर होता है पर संप्रदान कारक में ’को’
विभक्ति कर्ता द्वारा देने का भाव होता है।

करण कारक व अपादान कारक में अंतर-
(अ) करण कारक में ’से’ क्रिया का साधन है जबकि अपादान में ’से’ अलग होने का भाव है।

(ब) करण कारक ’से’ क्रिया का फल प्राप्त होता है जबकि अपादान कारक ’से’ तुलना, दूरी, डरने या सीखने का भाव है।

संज्ञाओं की कारक रचना
(अ) संस्कृत से भिन्न अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा के वचन में अंतिम ’आ’ कार को ’ए’ कार में परिवर्तित कर देते हैं।
जैसे – घोडे ने, घोडे को, घोडे से

(ब) संस्कृत में भिन्न शब्दों में विभक्ति का प्रयोग होने पर संज्ञाओं के बहुवचनात्मक रूपों के साथ ’ओ’ या ’यों’ प्रत्यय जोडते हैंै
जैसे-गधे-गधों ने, गधों को, गधों से। डाली-डालियों ने, डालियों को, डालियों से।

(स) संबोधन कारक के बहुवचन के लिये शब्दांत में ’ओ’ जोडते हैं।
जैसे-नर-नरों, लडका-लडकों, छात्र-छात्रो।

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