बालको में अभिवृद्धि व विकास विभिन्न प्रकार से होता है , अभिवृद्धि और विकास के कुछ मूल सिद्धांत है जिसके आधार पर बालक का विकास होता है , अभिवृद्धि व विकास के इन सिद्धांत को अलग – अलग मनोवैज्ञानिको विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है |अभिवृद्धि व विकास के सिद्धांत निम्न प्रकार से है |
अभिवृद्धि में होने वाले परिवर्तन को मापा जा सकता है क्यों की अभिवृद्धि मात्रात्मक होती है , जबकि विकास की मापा नही जा सकता है क्यों की बाल विकास गुणात्मक होता है| विकास देखा और समझा जा सकता है |
अभिवृद्धि व विकास का सिद्धांत
1. समान प्रतिमान का विकास सिद्धांत :
हरलॉक :– जो जीव जंतु जिस जाती वर्ग का होता है वह जीव जंतु अपनी ही जाती के अन्य जीव जन्तुओ के समान अभिवृद्धि व विकास को प्राप्त करेगा |
जैसे : बिल्ली का बच्चा बिल्ली की तरह
शेर का बच्चा शेर की तरह
मनुष्य का बच्चा मनुष्य की तरह
2.दिशा का विकास सिद्धांत :
1. मस्तकोधमुख विकास /सिफेलौकौडल विकास (Cephalocaudal) :
इस विकास सिद्धांत के अनुसार विकास की दिशा सिर से पैर की तरफ होती है | जैसे : सिर – मुख – गर्दन – धड – हाथ – पैर |
सिफेलौकौडल को गर्भावस्था में 5 माह तक जोड़ा जाता है |
2. केंद्र से शिरो की ओर / प्रोक्सिमोडीस्टल (Proximodistal) / निकट से दूर का विकास / वर्तुलाकार विकास :
– इस विकास सिद्धांत में विकास का केंद्र ह्रदय /सीने को माना जाता है |
– ऊपर की तरफ शिरा (सिर + हाथ) तथा नीचे की तरफ शिरा (पैर) है |
3. विभिन्न अंगों की गति का विकास सिद्धांत :
इस सिद्धांत के अनुसार शरीर के कुछ अंग काफी तेज गति से बढ़ते है | जैसे – हाथ , पैर , बाल , नाख़ून आदि एव कुछ अंग काफी धीमी गति से बढ़ाते है , जैसे : आंख ,कान, नाक, होठ , गर्दन , दांत आदि |
4. व्यक्तिगत विभिन्नता का विकास सिद्धांत :
इस विकास सिद्धांत के अनुसार – दो व्यक्तिओ का विकास कभी भी एक समान नही हो सकता उनमे शारीरिक , मानसिक , सवेगात्मक आदि सभी पक्षों में अंतर पाया जाता है |
– व्यक्तिगत विभिनता के प्रतिपादक – गाल्टन , स्किनर , टायलर |
5. निरंतरता का विकास सिद्धांत :
– विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो गर्भावस्था से जीवन पर्यंत तक चलती है |
6. सामान्य से विशिष्टता का विकास सिद्धांत :
इस विकास सिद्धांत के अनुसार – विकास की प्रक्रिया में बालक के द्वारा सामान्य गतिविधियों को संचालित किया जाता है और यही सामान्य गतिविधिया समय परिस्थिति के अनुसार विशिष्टता से बदल जाती है |
हरलॉक : “ विकास की प्रक्रिया में बालक की प्रतिक्रिया सामान्य से विशिष्ट की ओर आगे बढाती है |”
7. वंशानुक्रम व वातावरण का विकास सिद्धांत :
इस विकास सिद्धांत के अनुसार – मानव विकास वंशानुक्रम व वातावरण की अन्त: क्रियाओ का परिणाम है |
– मानव विकास वंशानुक्रम व वातावरण की अन्त: क्रिया सिद्धांत का प्रतिपादक स्किनर है |
वुडवर्थ : “ वंशानुक्रम व वातावरण का सम्बन्ध जोड के समान ना होकर गुणन के समान है | ”
क्रो & क्रो : “ मानव विकास ना केवल वंशानुक्रम और ना केवल वातावरण की देंन है बल्कि यह तो जैविक दान (वंशानुक्रम)और सामाजिक विरासत (वातावरण) के अन्त : क्रियाओ का परिणाम है |”
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